Sun. Sep 8th, 2024

छोटे बच्चे मोबाइल के आदी हो गए हैं। बच्चों को खाना खिलाने के लिए मोबाइल दिखाना जरूरी हो गया है। रोते बच्चे को चुप कराने के लिए या घर के बड़े लोग बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें मोबाइल दे देते हैं ताकि बड़े लोग बातें कर सकें या सो सके। चैटजीपीटी के अनुसंधान के अनुसार,मोबाइल फोन के उपयोग से बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। जो बच्चे ज्यादा समय तक गर्दन झुका कर मोबाइल फोन देखते हैं, उनकी गर्दन और पीठ की मांसपेशियों पर लगातार तनाव से गर्दन में दर्द होता है। बच्चे अत्यधिक मोबाइल फोन उपयोग के कारण खेलकूद, शारीरिक गतिविधियां नहीं कर पाते जो अनेक बीमारियों का कारण है।
मोबाइल से निकलने वाली नीली रोशनी प्राकृतिक नींद-जागने के चक्र को बाधित करती है और बच्चों में नींद की गड़बड़ी पैदा कर सकती है। यह अनेक बीमारियों का कारण है। लंबे समय तक मोबाइल की छोटी स्क्रीन को देखने से बच्चों की आंखों में खिंचाव और दृष्टि संबंधी अन्य समस्याएं हो सकती हैं। मोबाइल साइबरबुलिंग के लिए एक मंच प्रदान कर रहा है, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
मोबाइल का आदी होने के कारण बच्चे सामाजिक संपर्क, शैक्षणिक प्रदर्शन औरशारीरिक गतिविधियों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे बच्चे हिंसा, अश्लील, साहित्य तथा अभद्र भाषा के संपर्क में आ रहे हैं। एपल के सीईओ टिम कुक ने
1.भारतीय माता-पिता को सलाह दी कि बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करें।उन्होंने कहा, ‘अब बच्चे पैदाइशी डिजिटल हो गए हैं। इसलिए सीमाएं तय करना जरूरी है।’

भारतीय बच्चों पर किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों के नतीजे चेताने वाले हैं-
करीब 1000 बच्चों और उनके माता-पिता पर किए गए सर्वे में सामने आया कि 92 प्रतिशत छात्र बाहर खेलने की बजाय मोबाइल गेम खेलना पसंद करते हैं। करीब 82 प्रतिशत बच्चे स्कूल से लौटकर आते ही फोन मांगते हैं। लगभग 78 प्रतिशत बच्चों को खाना खाते हुए फोन देखने की आदत है।
एक स्थानीय सर्वे के अनुसार 9 से 13 वर्ष के बच्चों के पास दिनभर
स्मार्टफोन रहता है। एक अन्य रिपोर्ट बताती हैं कि भारतीय बच्चे सबसे जल्दी स्मार्टफोन पाने वाले बच्चों में शुमार हैं। ज्यादातर बच्चे मोबाइल पर 15 सेकंड की छोटी छोटी रील्स देखते है।
तमिलनाडु की एमएस यूनिवर्सिटी के सांख्यिकी विभाग की स्टडी जेनरेशन केअनुसार बच्चे रोज औसतन डेढ़ से दो घंटे में 360-480 रील देखते हैं। कैंपसके 329 छात्रों द्वारा की स्टडी में पता चला कि घंटों रील देखने सेएकाग्रता में बाधा पड़ रही है, ये ध्यान कम कर रहा है, वैलबीइंग पर असर डाल रहा है। ‘शॉर्ट वीडियोज एंड स्टूडेंट मेंटल हेल्थः एन इन्वेस्टिगेशन’ स्टडी में कहा गया कि ये माध्यम उपयोगकर्ता की रुचि के हिसाब से एल्गोरिद्म का इस्तेमाल करके पर्सनलाइज्ड कंटेंट परोसते हैं। इससे वे वीडियो देखने के कभी खत्म न होने वाले चक्र में फंस जाते हैं। स्टडी के गाइड प्रोफेसर राकेश श्रीवास्तव बताते हैं कि हर वीडियो देखकर डोपामाइन हॉर्माेन रिलीज होता है, इससे दवाओं जैसी लत होती है।

स्टडी में कहा गया कि रात में वीडियो देखने वाले बच्चे पर्याप्त नींद
नहीं लेते। इससे एकाग्रता पर असर पड़ रहा है, आगे चलकर अकादमिक प्रदर्शन से भी समझौता हो रहा है। स्टडी का निष्कर्ष था कि सोने-जागने के चक्र में पड़ रहे व्यवधान से संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली, अकादमिक सफलता पर भी असर पड़ता है। जल्दी-जल्दी बदलने वाले ऐसे कंटेंट को लगातार देखने से मस्तिष्क की सूचनाएं समझने और उसे सहेजने की क्षमता में बाधा आ सकती है। जैसे-कॉर्पाेरेट में प्रदर्शन पर निगरानी रखने के लिए मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम (एमआईएस) होता है, आपको भी एमआईएस बनाकर बच्चों के रोज के स्क्रीन टाइम पर निगरानी रखनी चाहिए। यह उनके स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करने और भविष्य में किसी भी मेंटल हेल्थ समस्या से बचाने में मदद करेगा। कृपया इसे प्राथमिकता में रखें।
फंडा यह है कि अभिभावक होने के नाते यह बेहद महत्वपूर्ण है कि जेनरेशन के डिजिटल जुड़ाव और उनकी संपूर्ण सेहत यानी ओवरऑल वैलबीइंग के बीच एक स्वस्थ संबंध बना रहे। फोन का दिमाग पर नशे की तरह असर हो रहा है, बच्चे मोबाइल के नशे के आदी हो रहे हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रो. ऐना लेंब्के के मुताबिक ‘हम अपनी पसंद का डिजिटल ड्रग ले रहे हैं और इसमें स्मार्टफोन का इस्तेमाल भी शामिल है। यह डिजिटल वायरों में उलझी पीढ़ी के लिए नशे की सुई की तरह है।’ जब भी व्यक्ति के दिमाग में डोपामाइन नाम का न्यूरोकेमिकल रिलीज होता है। तो व्यक्ति को आनंदन का अनुभव होता है।
अकसर कुछ विशेष खाने, शराब, धूम्रपान, ड्रग्स, वीडियो गेम, पोर्नाेग्राफी या फोन देखने से भी दिमाग से डोपामाइन रिलीज होना शुरू हो जाता है। इसीतरह जो बच्चे मोबाइल के आदी हो जाते है अगर अब उनसे मोबाइल छीना जाता है
तो उन्हे परेशानी महसूस होती हैं। जो दर्द, चिंता, निरुत्साह, अवसाद औरचिड़चिड़ापन में बदल जाता है। जिसका बच्चों की मानसिकता पर गहरा असर पड़सकता है।
  • इन सब से बच्चों को बचाने के लिए माता-पिता यह सब करना चाहिए: –
-बच्चे जो भी खेल खेलना चाहे उनके साथ खेलें। बच्चों को हर समय यह मत कहिए ऐसा करो वैसा करो बल्कि बच्चों को समय दीजिए उसका समय आप मत लेवें।
-जो बच्चा कहता है वह करें, उसके साथ पार्क में खेलें। मोबाइल के अलावाअन्य कोई खेल खेलें।
–बच्चों की व्यायाम या खेल जैसी गतिविधियां मैं रुचि पैदा करें।
-एक बार बच्चे में यह समझाएं कि मोबाइल से उन्हें नुकसान हो रहा है। फिरबच्चे को कम से कम 7 दिन के लिए मोबाइल न देवें ।
 -साथ ही बच्चों को समझा कर उनके साथ बैठकर मोबाइल देखने का समय निर्धारित करना चाहिए।
-बच्चों को अच्छी परवरिश देना हम भारतीयों की जिम्मेदारी है। अपने बनाएहुए टाइमटैबल का अनुसरण करेंगें।
-अपने बच्चे को बाहरी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें, जैसे कि खेलकूद या टहलने जाना।
-अपने बच्चे के मोबाइल फोन के उपयोग पर नजर रखें। आप उनके मोबाइल फ़ोन के उपयोग पर नज़र रखने के लिए विभिन्न अभिभावक नियंत्रण ऐप का उपयोग कर सकते
हैं।
-अपने बच्चे को ऐसी अन्य गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें जिनमें मोबाइल फोन शामिल नहीं हैं। उदाहरण के लिए, किताबें पढ़ना, बोर्ड गेम खेलना या शिल्प गतिविधियों में भाग लेना।
-बच्चे अक्सर बड़ों के व्यवहार की नकल करते हैं। इसलिए, अपने बच्चे के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करे। अपने बच्चे के सामने अपने मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग न करें ।
-याद रखें, आपके बच्चों के भविष्य के जुम्मेवार आप खुद हैं। समय रहते आपअपनी आदतें भी सुधारें व अपने बच्चों की आदतें की भी। अगर आप अपने बच्चों को मोबाइल का आदि होने से नहीं बचा सकते तो आपके बच्चो का आप से बड़ा कोई दुश्मन नहीं हो सकता है।
लेखक – शंकर सोनी
(लेखक पेशे से वरिष्ठ अधिवक्ता व नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *